प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर एक तरफ तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं तो दूसरी तरफ नागा साधुओं के अखाड़ों का आगमन भी शुरू हो गया है। घोर तप के बाद ही महाकुंभ के दौरान लगभग हजारो लोगो को नागा सन्यासी बनाया जाएगा ।एक सामान्य संन्यासी नागा बनता है और जब नागा बनता है तो शस्त्रत्त् व शास्त्रत्त् दोनों की शिक्षा में पारंगत होता है।
नागा सन्यासी को महाकुम्भ मेले के दौरान बीर्जाहवन संस्कार होता है। यह संस्कार केवल कुम्भ के अवसर पर होता है ।नागा सन्यासियों के नाम की पर्ची उनके गुरु के माध्यम से जारी होती है, इसके बाद यह अखाड़े के रमता पंच के पास जाती है। रमता पंच चरित्र के आधार पर मुहर लगाता है, इसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर के सामने आधा मुंडन होता है और आधी रात को गंगा में 108 डुबकी लगाकर आते हैं। इसके बाद हवन होता है।सुबह सभी को दंड देकर उनको हिमालय में तप करने के लिए भेजा जाता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे यज्ञोपवीत संस्कार में काशी पढ़ने के लिए जाते हैं। फिर गुरु मनाते हैं और इसके बाद भोर में चार बजे गंगा स्नान के बाद गुरु संन्यासी की इस दीक्षा के बाद देखा जाता है कि संन्यासी संत जीवन बिता सकेगा कि नहीं। इस दौरान संन्यासी की हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है। इस प्रक्रिया में लंबा समय लगता है, कभी दो तो कभी छह साल तक लग जाता है। जिसके बाद किसी कुम्भ मेले में दिगंबर संन्यासी बनाया जाता है, जिससे ये नागा सन्यासी बन जाते हैं।