महज एक पन्ने में समाई दुनिया की सबसे छोटी भागवत गीता । क़ीमत जानकार हो जाएंगे हैरान, पास रखने से दूर भागेगी हर मुश्किल …?

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रिपोर्ट : अंकित श्रीवास्तव – गोरखपुर

GORAKHPUR : भागवत गीता ये नाम और इसकी पवित्रता व महत्वता शायद हर सनातनी बहुत ही अच्छे से समझ सकता है । भागवत पुराण में भी गीता के अभी श्लोकों के बारे में बख़ूबी आपने बड़े बड़े मंचों और कथा पंडालों से सुना होगा, कहते है नित दिन भागवत गीता का पाठ करने से ज्ञान के साथ साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है ऐसे में अबतक जो भागवत गीता आपने देखी और पढ़ी होगी उसमें सैकड़ो पन्नो में भागवत गीता के श्लोकों का सार समाहित है । किंतु गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महज एक पेज की सम्पूर्ण भागवत गीता इन दिनों गोरखपुर के साथ साथ देश भर में चर्चा का विषय बनी है । लोग तो इसे सम्पूर्ण विश्व की सबसे छोटी गीता का खिताब भी देने लगे हैं । इस भागवत गीता का साइज भी इतना छोटा है कि इसे आप आसानी से अपने पर्स, जेब, में रख सकते है । इतना ही नही कई ऐसे सनातनी भी है जिनका मानना है कि इतनी छोटी साइज़ में सम्पूर्ण भागवत गीता को लोग ताबीज बनाकर भी ग्रहण कर सकते हैं जिससे किसी भी प्रकार की बाधाएं जीवन मे प्रवेश नही करेगी ।

जानते है अब गीता प्रेस गोरखपुर का इतिहास

गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी भारत में भगवद गीता का सर्वाधिक महत्व है और आज विदेशो मे भी इसकी डिमाँड कुछ कम नही है इस बात का ध्यान रखते हुए गोरखपुर में बडे पैमाने पर धार्मिक पुस्तक छापने वाली गीता प्रेस अब भगवद गीता को 1 रुपए में भी छापना शुरू कर दिया है। ₹1 की भगवत गीता को लोग अब ताबीज के रूप में भी पहन रहे है।

गीता का प्राचार्य गीता प्रेस का उद्देश्य है छोटे बड़े हर रूप में गीता का प्रकाशन किया है इसके साथ ही इसे लगभग 15 भाषाओं में प्रकाशित किया गया है । गीता का प्रकाशन 1923 से चल रहा है लेकिन एक पृष्ठ वाली गीता का प्रकाशन 1942 में शुरू हुआ कुछ लोगों की मांग थी कि हमको ऐसी गीता मिल जाती जिसको हम जीवन मे आसानी से धारण करते हैं । हालांकि पहले इसकी छपाई करना थोड़ा मुश्किल था पर आज जो तकनीक है, जिसकी वजह से हम इसको कितना भी छोटा या बड़ा टाइप कर सकते हैं हालांकि इसके लिए स्पेशल टाइप मंगाया गया इसकी अच्छी तरह से कंपोजिंग करके प्रूफ्र रीडिंग करके इसको छापा जाता है ताकि इसमें कोई अशुद्धि नही रह जाये ।


1₹ से पहले 10 पैसे थी भागवत गीता की कीमत ?

जिस भागवत गीता का आज मूल्य 1 रूपये निर्धारित किया गया है आपको बताते चले कि वर्ष 1942 में इसकी कीमत लगभग 10 पैसे थी । जिसके बाद 1980 में इसकी कीमत को बढ़ाकर 25 पैसे किया गया । वहीं वर्ष 2013 में इसकी कीमत को 50 पैसे किया गया । उसके बाद 2020 में इसकी कीमत ₹1 हो गई जो फ़िलहाल अबतक निर्घारित है । कई ऐसे भी सनातनी है जो इस मिनी भागवत गीता को जीवन मे रक्षा कवच के रूप में भी ग्रहण करते हैं । ऐसे कई लोगों का मानना है कि यह उनकी रक्षा करेगा । जैसे लोग रक्षा सूत्र को बांधते है ठीक उसी तरह से कोई अन्य यंत्र पहनते हैं, धारण करते हैं । इसी तरह से इसका भी उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है । कई लोगों का ऐसा मानना है कि अगर इसको ताबीज के रूप में धारण कर लिया तो उनके ऊपर कोई प्रेत बाधा नहीं रहेगी । उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं आएगी । इस विश्वास के साथ लोग इस गीता को श्रद्धा और विश्वास के साथ सोने व चांदी में तो कुछ लोग इसे पीतल व लोहे में जिसकी जो श्रद्धा होती है उसके हिसाब से बनवाकर धारण करते हैं।

अगर हम बात करें तो ₹1 वाली भगवत गीता के बारे में बात करें तो इसमें पूरी की पूरी 700 श्लोक समाहित है । श्रीमद् भागवत गीता में जो 700 श्लोक हैं वह इसमें आपको पढ़ने को मिल जाएगी और यह शुद्ध छपे हुए हैं । हालांकि पहले भी इसका शुद्ध कंपोज हुआ करता था ।जिस समय यह लेटर पेट से छापा करता था। शुरू से ही इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता था की छपाई करते समय भागवत गीता में कोई भी त्रुटि न रह जाए।

गीता प्रेस की स्थापना ही शुद्ध प्रकाशन के लिए हुई है । यह बात 1922 की है जब गीता प्रेस अपने अस्तित्व में नहीं था । गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका थे ।भगवत गीता को वह छपवाना चाह रहे थे उन्होंने देखा कि कोलकाता में एक बड़ा प्रेस था जहां पर उन्होंने गीता को छपवाना शुरू किया उन्होंने देखा कि पुस्तकों में कुछ अशुद्धियां रह गई एक तो बांग्लादेश ऊपर से 1922 की यह बात है उसके बाद उन्होंने प्रेस के मालिक से कहा कि इसमें अशुद्ध दिया है। इस पर प्रेस के मालिक ने कहा कि अगर आपको इतना शुद्ध प्रकाशन करना है तो आप अपना प्रेस लगा लीजिए । इस बात से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने अपना प्रेस लगा लिया जिसका मुख्य उद्देश्य ही शुद्ध प्रकाशन करना था। इसके बाद ही गीता प्रेस की स्थापना 29 अप्रैल 1923 में हुई। तब से ही गीता प्रेस का यह उद्देश्य रहा भगवत गीता को छापते समय इसमें कोई टूटी ना रह जाए । इसी वजह से उसे समय अभी जब लेटर प्रेस से छपता था उसे समय कुछ विद्वान हमारे पास बैठते थे ताकि अगर इसमें कोई टूटी रह जाए तो उसे अपने हाथ से सही कर सके।

अगर हम ₹1 रुपए में मिलने वाली भगवत गीता की बात करे तो 1942 से अभी तक लगभग 10 लाख 35 हजार प्रतिलिपि प्रकाशित हो चुकी है । गीता प्रेस के मैनेजर ने बताया कि हमारी कोशिश क्या रहती है कि यह हमारे पास हमेशा उपलब्ध रहे जब एक बार इसकी छपाई होती है तो 20 हजार से 25 हजार प्रतिलिपि छपाई होती है। हमारी कोशिश यह रहती है कि सभी ब्रांचो पर हमारे यह पुस्तक उपलब्ध रहै ।हमारी कोशिश या रहती है कि अगर कोई भी इसको लेने आए तो वापस न जाए उसकी श्रद्धा है इसको धारण करना चाहता है तो उसको अवश्य मिल जाए।

गीता प्रेस के मैनेजर लालमणि तिवारी ने बताया कि महाकुंभ को लेकर भी गीता प्रेस ने विशेष तैयारियां की हैं पिछले बार कुंभ में 85 लाख की पुस्तक की बिक्री हुई थी । इस बार हमलोगो का लक्ष्य 2 करोड़ पुस्तक की बिक्री का है। महाकुंभ में भीड़ ज्यादा होती है जिससे रूट डायवर्जेंट हो जाता है जिसकी वजह से भी लोग गीता प्रेस के स्टॉल पर नहीं पहुंच पाते हैं।

पूरे विश्व में भगवद गीता अब तक लगभग 15 से अधिक भाषाओ में प्रकाशित की जा चुकी है । मुनाफे को ही सफलता का मूल मंत्र मानने वाले आज ज्यादातर प्रकाशक चटपटे और मसालेदार साहित्य छापकर जहाँ अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने मे लगे है । ऐसे मे गोरखपुर का गीता प्रेस अपने मूल्यो एवं सिद्घान्तो पर अडिग है ।बिना लाभ की चिन्ता किये मानव मात्र के कल्याण में जुटा गीता प्रेस विश्व का एक मात्र ऐसा संस्थान है जहाँ इतनी कम मूल्य पर साफ छपाई और अच्छे कागजो वाली पुस्तके उपलब्ध कराता है । यहाँ 1 रूपये की भी भागवत गीता उपलब्ध है जो इस महगाँई मे भी किसी चमत्कार से कम नही है । ऐसे में ये कहना ग़लत नही है कि यह गीता की गंगा कहा से बह रही है । यह एक पवित्र स्थल के रूप मे भी जाना जाने लगा है ।बाहर से आने वाले पर्यटक गीता प्रेस को किसी मंदिर से कम महत्व नही देते बल्कि उसे मंदिर की भांति उसके सामने नत मस्तक भी होते है । गीता प्रेस का द्वार ही कला धर्म और संस्कृति का अदभुत संगम है।

गोरखपुर से बंसल न्यूज़ ब्यूरो अंकित श्रीवास्तव की ख़ास प्रस्तुति……

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