अंग्रेजों को याद दिलाई थी औक़ात, ऐतिहासिक है कानपुर के गंगामेला, भैंसा ठेला, ऊँट, और घोड़ों की निकलती सवारी

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KANPUR GANGA MELA : देशभर में होली का महोत्सव धूमधाम से ज्यादातर एक या दो दिन मनाया जाता है, इसके साथ ही कई जगह होली के पाँचवें दिन रंग पँचमी भी मनाई जाती है, लेकिन कानपुर में सात दिनों तक मनाया जाने वाला होली का पर्व अपने अनोखे अंदाज के साथ देशभर में मशहूर ऐतिहासिक गंगामेला के रूप में समापन होता है । कानपुर के मशहूर हटिया बाजार स्थित रज्जन बाबू पार्क से आज ही आज पूर्व की भांति ऐतिहासिक गंगा मेले की शुरुआत हुई, इस दौरान कानपुर जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह व कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार द्वारा झंडारोहण कर के देश के क्रांतिकारियों के शिलालेख पर पुष्पांजलि अर्पित की गई । इसके बाद कंपू के ऐतिहासिक रज्जन बाबू पार्क हटिया से कानपुर वासियों के द्वारा 84वां गंगामेला पर्व धूमधाम शुभारंभ हुआ । ऐसे में रंगों का भैंसा ठेला कानपुरवासियों को रंगों से रंगने निकला ।


ऊंट, घोड़े, बुलडोजर, व बैलगाड़ी होती है इस मेले की शान

बताते चले कि कानपुर के ये ऐतिहासिक गंगामेला हर साल की तरह इस साल भी अनुराधा नक्षत्र में आयोजन किया जा रहा है। रंगों के जुलूस में 6 ऊंट, 5 घोड़े, 8 ट्रैक्टर व बुलडोजर के साथ लोडर होगा, साथ ही 6 हजार लीटर रंग से कानपुरवासियों को रंगों में सराबोर किया जाएगा। सारी तैयारियों के साथ रंगो के बड़े बड़े ड्रम भैंसा ठेला पर लादकर हटिया के रज्जन बाबू पार्क से निकल कर जनरलगंज बाजार, मनीराम बगिया, मेस्टन रोड, चौक, टोपी बाजार, कोतवालेश्वर मंदिर चौक, चौक सर्राफा, मेस्टन रोड बीच वाला मंदिर, कोतवाली चौराहा, संगमलाल मंदिर, कमला टावर, फीलखाना, बिरहाना रोड, नयागंज चौराहा, शतरंगी मोहाल, लाठी मोहाल, जनरलगंज होते हुए हटिया पहुँचेगा। इसके बाद शाम को भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा। इसके साथ ही शाम को सरसैया घाट में मेले का आयोजन किया जाएगा, जिसमें जिला प्रशासन, पुलिस अधिकारी व शहर के सभी जनप्रतिनिधि शिरकत करेंगे। इसके साथ ही काशी की तर्ज पर गंगा आरती का आयोजन किया जाएगा।



कानपुर हटिया का गंगामेला – रंगों का भैंसा ठेला- अनोखी परंपरा

कानपुर के इस ऐतिहासिक गंगा मेला की खासियत रंगों का भैंसा ठेला है. जो कि मशहूर हटिया बाजार से यह ठेला निकलता है, जिनमे रंगों से भरी सैकड़ो बाल्टियां, पिचकारियां और ढेर सारी मस्ती होती है. इस दौरान इसके पीछे-पीछे ऊंट, घोड़े, ट्रैक्टर और झूमते-गाते लोग चलते नज़र आते हैं. ऐसे में इस गंगा मेला के दिन सरसैया घाट पर लोगों का एक बड़ा हुजूम उमड़ पड़ता है. इस दौरान बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं सब एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और हंसी-मजाक करते हैं. कोई डीजे की धुन पर नाच रहा होता है तो कोई गंगा में डुबकी लगा रहा होता है. कानपुर की होली सिर्फ एक त्योहार नहीं एक जज्बा है और एक जुनून है. यह दोस्ती, भाईचारे और आजादी की याद दिलाने वाला त्योहार है. इसीलिए यहां होली सिर्फ एक दिन नहीं पूरे सात दिन तक खेली जाती है और जब तक गंगा मेला नहीं हो जाता तब तक यहां के लोगों का रंग नहीं उतरता ।


अंग्रेजों के शाशनकाल से जुड़ी है इस ऐतिहासिक गंगामेला की कहानी

देशभर में मशहूर कानपुर के इस गंगामेला कि भी कहानी बेहद दिलचस्प है, अंग्रेजों के शाशनकाल से जुड़ी है इस ऐतिहासिक गंगामेला की कहानी और इस गंगा मेला की शुरुआत कैसे हुई ? चलिए अब जानते है उस ऐतिहासिक छण को । बात 1942 की है जब भारत देश मे अंग्रेजों की हुकूमत थी । इस दौरान कानपुर के हटिया बाजार के कुछ युवा होली खेलना चाहते थे. लेकिन अंग्रेजों को ये गवारा नही था, उस समय के डीएम मि. लुईस ने इस होली खेलने की ख्वाहिश पर अपना तुगलकी फरमान जारी करते हुए होली खेलने पर रोक लगा दी थी, उन्होंने आदेश दिया कि कोई भी होली नहीं खेलेगा, ऐसा करने पर होली खेलने वाले लोग सज़ा भुगतेंगे । लेकिन कानपुर के युवा कहां मानने वाले थे, उन्होंने ठान लिया कि तत्कालीन जिलाधिकारी के ऑर्डर की धज्जियां उड़ाते हुए वो हर हाल में होली खेलेंगे. जैसे ही उन्होंने रंग खेलना शुरू किया, डीएम तक ये खबर पहुँच गयी, जब लोग होली खेल रहे थे उसी वक़्त मौके पर पुलिस आ गई और कई युवाओं को गिरफ्तार कर लिया । इससे पूरे शहर में गुस्सा भड़क गया । ऐसे में लोगों ने तय कर लिया कि जब तक सभी को रिहा नहीं किया जाएगा, तब तक होली खेली जाती रहेगी, धीरे धीरे ये विरोध की खबर जब आजाद हिन्द के नेताओं तक पहुंची तो उन्होंने अंग्रेजों से बात की जिसके बाद आखिरकार अंग्रेजों को झुकना पड़ा और सभी युवाओं को रिहा कर दिया गया । लेकिन रिहाई के साथ ही अंग्रेजों ने एक शर्त रखी कि सभी रिहा किए गए लोगों को सरसैया घाट पर छोड़ा जाएगा, जब युवा वहां पहुंचे तो पूरे कानपुर से लोग वहां रंग लेकर आ गए और जबरदस्त होली खेली गयी, बस उसी दिन से ये परंपरा बन गई और हर साल कानपुर में अनुराधा नक्षत्र पर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ कानपुर में गंगा मेला का रंगों से भरा ये पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा ।


हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल की मिसाल है मेला

कानपुर के इस ऐतिहासिक गंगा मेला के दौरान निकलने वाले ठेलों और गाड़ियों का मुस्लिम समुदाय के लोग भी स्वागत करते हैं। इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग तिरंगा फहराकर और फूलों की वर्षा कर वे इस उत्सव को और भी खास बनाते हैं। सभी एक-दूसरे को गुलाल लगाकर गले लगते हुए होली की शुभकामनाएं देते हैं। रास्तेभर में मुस्लिम समुदाय के लोग रंग के ठेले का अपने अपने अंदाज में स्वागत करते हैं, और छतों से भी रंगों की बारिश होती है। इस लिए कानपुर का ये गंगामेला अपने आप मे अनोखा कहा जाता है, जहाँ भाईचारे की मिसाल भी एक अनोखे पर्व और अपनत्व का एहसास दिलाती है ।

 

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