

@ रिपोर्ट : अनुराग श्रीवास्तव : विशेष संवाददाता
#PITRAPAKSHA 2025 : पितृपक्ष विशेष : 07 सितंबर 2025: हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं में पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण अवधि है, जो पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए समर्पित है। आज से शुरू हो रहे इस 16 दिवसीय पितृ पक्ष की इस बार विशेषता यह है कि इसमें चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोनों घटित होंगे, जो इसे और अधिक आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। पितृपक्ष 2025 के इस मौके पर देश की जानी मानी, एस्ट्रोलॉजर, टैरोकार्ड रीडर, व धार्मिक मान्यताओं की विशेष जानकार डॉ नीतिशा मल्होत्रा ने इंडिया न्यूज़ 24×7 डिजिटल टीम से बातचीत के दौरान ये बताया कि शास्त्रों में ग्रहण काल को विशेष माना जाता है, जहां धार्मिक कर्मों में सावधानी बरतनी पड़ती है, लेकिन साथ ही यह पूर्वजों की कृपा प्राप्त करने का अनोखा अवसर भी प्रदान करता है। इस बीच, पितृ पक्ष में खरीदारी को लेकर हमेशा की तरह बहस छिड़ी हुई है – क्या यह शुभ है या अशुभ? आइए विस्तार से समझते हैं इस वर्ष के पितृ पक्ष की महत्वपूर्णता, तिथियां, मान्यताएं और ग्रहणों का प्रभाव।
पितृ पक्ष की परंपरा और मान्यताएं
पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान मृत्यु के देवता यमराज पितरों की आत्माओं को यमलोक से मुक्त कर देते हैं, और वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के पास आते हैं। पितर तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मों की अपेक्षा रखते हैं, जो उनकी शांति और परिवार की समृद्धि सुनिश्चित करते हैं।इस अवधि में एक प्रमुख बहस खरीदारी को लेकर है। एक पक्ष का मानता है कि पितृ पक्ष मृत्यु से जुड़ा होने के कारण अशुभ काल है। जैसे किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोक काल में हम शुभ कार्य स्थगित कर देते हैं, वैसे ही इन दिनों में नई वस्तुएं खरीदना अशुभ माना जाता है। अधिकांश लोग इसी मान्यता को अपनाते हैं और खरीदारी से परहेज करते हैं।
जबकि वहीं दूसरा पक्ष इससे असहमत है। उनका तर्क है कि 16 की संख्या शुभता का प्रतीक है, और पितरों का आगमन अशुभ कैसे हो सकता है? पितर अब सूक्ष्म रूप में पवित्र आत्माएं हैं, जिनका आना कल्याणकारी होता है। यदि वे हमें नई चीजें खरीदते या समृद्धि बढ़ाते देखें, तो उन्हें प्रसन्नता मिलती है कि उनके वंशज सुखी हैं। इससे उनकी आत्मा को क्लेश नहीं, बल्कि आशीष मिलता है। धार्मिक विशेषज्ञों के मुताबिक, पितृ पक्ष पितरों की प्रसन्नता के लिए है, और इसमें शुभ कार्य जैसे खरीदारी मंगलकारी हो सकती है, क्योंकि पितर गणेश पूजा और देवी आराधना के बीच आते हैं। उनकी उपस्थिति में की गई खरीदारी से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूर्वजों के त्याग के प्रति आदर व्यक्त करना ही श्राद्ध है। इन 16 दिनों में अनैतिक, आपराधिक या गलत कार्यों से बचना चाहिए, न कि शुभ कार्यों से। इसलिए, यह भ्रम त्यागें कि ये दिन अशुभ हैं; बल्कि ये सामान्य दिनों से अधिक शुभ हैं, क्योंकि पूर्वज हमारे साथ हैं, हमें देख रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं।
इस वर्ष पितृ पक्ष की विशेष महत्वता: चंद्र और सूर्य ग्रहण का संयोग
2025 का पितृ पक्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें दो प्रमुख ग्रहण घटित हो रहे हैं – चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण। हिंदू ज्योतिष और शास्त्रों में ग्रहण काल को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर माना जाता है, लेकिन साथ ही सुतक काल (ग्रहण से पहले की अशुभ अवधि) में सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। इस संयोग से पितृ पक्ष की आध्यात्मिक शक्ति और बढ़ जाती है, क्योंकि ग्रहण पूर्वजों से जुड़े कर्मों को अधिक फलदायी बनाते हैं।
चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) इस वर्ष का पहला ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण है, जो 7 सितंबर 2025 को पितृ पक्ष के प्रारंभ दिवस पर ही पड़ रहा है। भारत में यह ग्रहण शाम से रात तक दिखाई देगा, और इसका समय लगभग 11:28 पूर्वाह्न से 4:55 अपराह्न ईस्टर्न टाइम तक है, लेकिन भारतीय समयानुसार यह रात में प्रभावी होगा। शास्त्रों में चंद्र ग्रहण को पितरों की पूजा से जोड़ा जाता है। यह समय पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है, लेकिन सुतक काल (ग्रहण से 9 घंटे पहले) में श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्म नहीं किए जाते। विशेषज्ञों के अनुसार, इस ग्रहण के दौरान ध्यान, जप और दान से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है, और परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। यह संयोग पितृ पक्ष को दिव्य बनाता है, क्योंकि चंद्रमा भावनाओं और पूर्वजों से जुड़ा ग्रह है।
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या पर होगा, और इसी दिन आंशिक सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। यह ग्रहण यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अन्य क्षेत्रों में दिखाई देगा, लेकिन भारत में सीमित दृश्यता हो सकती है। सूर्य ग्रहण अमावस्या पर होने से यह पूर्वजों के लिए नवीनीकरण का द्वार माना जाता है। ज्योतिष में इसे अहंकार त्याग, पूर्वजों के दुखों को मुक्त करने और वंश के लिए आशीष प्राप्त करने का अवसर कहा जाता है। हालांकि, सुतक काल (ग्रहण से 12 घंटे पहले) में पूजा-पाठ स्थगित रहता है। इस ग्रहण से पितृ पक्ष की ऊर्जा बढ़ती है, और श्राद्ध कर्म अधिक प्रभावी होते हैं। ऐसे में ग्रहणों का यह संयोग पितृ पक्ष को दुर्लभ बनाता है। परंपरागत रूप से, ग्रहण काल अशुभ माना जाता है, इसलिए सुतक में भोजन, पूजा या शुभ कार्य नहीं किए जाते। लेकिन ग्रहण के बाद किए गए तर्पण और दान से पितरों की कृपा कई गुना बढ़ जाती है। यह समय पितृ ऋण से मुक्ति के लिए सर्वोत्तम है, और इससे वंश में समृद्धि, संतान सुख तथा कुल की उन्नति होती है। हिंदू मान्यताओं में ऐसे संयोग पूर्वजों की याद में गहन चिंतन और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरित करते हैं।
पितृ पक्ष 2025 की प्रमुख तिथियां
इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 07 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध से हो रही है, और समापन 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या पर। विस्तृत तिथियां निम्न हैं:
– रविवार, 07 सितंबर: पूर्णिमा श्राद्ध (चंद्र ग्रहण के साथ)
– सोमवार, 08 सितंबर: प्रतिपदा श्राद्ध
– मंगलवार, 09 सितंबर: द्वितीया श्राद्ध
– बुधवार, 10 सितंबर: तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध
– गुरुवार, 11 सितंबर: पंचमी श्राद्ध, महा भरणी
– शुक्रवार, 12 सितंबर: षष्ठी श्राद्ध
– शनिवार, 13 सितंबर: सप्तमी श्राद्ध
– रविवार, 14 सितंबर: अष्टमी श्राद्ध
– सोमवार, 15 सितंबर: नवमी श्राद्ध
– मंगलवार, 16 सितंबर: दशमी श्राद्ध
– बुधवार, 17 सितंबर: एकादशी श्राद्ध
– गुरुवार, 18 सितंबर: द्वादशी श्राद्ध
– शुक्रवार, 19 सितंबर: त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
– शनिवार, 20 सितंबर: चतुर्दशी श्राद्ध
– रविवार, 21 सितंबर: सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध (सूर्य ग्रहण के साथ)
पितृ पक्ष का धार्मिक महत्व और अनुष्ठान
पितृ पक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित 16 दिनों की पवित्र अवधि है। इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान, ब्राह्मण भोजन, दान और जरूरतमंदों की सहायता विशेष फलदायी होती है। श्राद्ध कर्म से पितृ दोष दूर होता है, और जीवन में सुख-शांति आती है। इस वर्ष ग्रहणों के कारण, अनुष्ठान और अधिक शक्तिशाली माने जा रहे हैं। लेकिन सुतक काल में सावधानी बरतें – ग्रहण से पहले और दौरान कोई नया कार्य शुरू न करें, और ग्रहण के बाद स्नान कर पूजा करें।
पितरों की संतुष्टि से परिवार में एकता, स्वास्थ्य और धन की वृद्धि होती है। इसलिए, इस पर्व को श्रद्धा से मनाएं। यदि खरीदारी को लेकर दुविधा है, तो शास्त्रों की व्याख्या के आधार पर निर्णय लें – कई विशेषज्ञ इसे शुभ मानते हैं, खासकर जब पितरों की उपस्थिति में समृद्धि प्रदर्शित हो। ग्रहणों के इस दुर्लभ संयोग में, पितृ पक्ष पूर्वजों के आशीर्वाद प्राप्त करने का सुनहरा अवसर है।






