सपा और बीजेपी को आख़िर क्यों है राजा भैया की जरूरत?

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UTTAR PRADESH : चौथे चरण के चुनाव खत्म होने के बाद अब सभी राजनितिक दलों ने पाँचवें चरण के लिए अपनी अपनी कमर कस ली है ऐसे में पांचवें चरण के ऐन पहले जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता और उत्तरप्रदेश के कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने मंगलवार शाम ऐलान किया कि वो किसी भी पार्टी को अपना समर्थन नहीं देंगे तथा उनके समर्थक खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके इस एलान के बाद पूर्वांचल की राजनीति में खलबली मच गई। दो महीने पहले राज्यसभा की 10 सीटों के हुए चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने वाले राजा भैया के इस रुख ने लोगों को बेहद आश्चर्यचकित कर दिया, हालांकि राजा भैया के लिए ये पहली बार नहीं है। बता दें कि उनकी सियासत की शुरुआत निर्दलीय हुई थी। साल 1993 में राजनीति में आने वाले राजा भैया समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे। बता दें कि सपा संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव का राजा भैया को संरक्षण मिलता रहा। बसपा की सरकार में जब उनको जेल भेजा गया तब सपा ने इसका जमकर विरोध किया था। इसके बाद जब साल 2003 में सपा की सरकार आई तो वह फिर से मंत्री बनाए गए, अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख पार्टियां हमेशा राजा भैया को साथ लेने के लिए क्यों तैयार रहते हैं, बता दें कि बीजेपी और सपा दोनों जानते हैं कि अगर राजा भैया उनके साथ में रहेंगे तो पूर्वांचल की सीटों पर उनके प्रभाव का लाभ उनको मिलेगा। इसके अलावा क्षत्रिय वोटर आसानी से उनके साथ आ सकते हैं। चुनाव विधानसभा का हो या फिर लोकसभा, हर चुनाव में राजा भैया का पूर्वांचल की कई सीटों पर प्रभाव माना जाता है। इसमें कौशांबी और प्रतापगढ़ मुख्य रूप से शामिल है।


अचानक से यूपी की राजनीति में राजा भैया की बढ़ गई कीमत, सपा से लेकर बीजेपी  तक डाल रही डोरे; समझिए सियासी गणित - Who Will Win The 10th Seat In Rajya


 

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