कार्बाइड युक्त पटाखों के उपयोग बने 105 मरीजों के जीवन मे अंधकार का कारण, अस्पतालों में आंखों की क्षति के मरीजों संख्या पहुँची 3 गुना

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रिपोर्ट : अनुराग श्रीवास्तव – कानपुर

कानपुर : दीपावली के उत्सव ने इस बार कानपुर में कई परिवारों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल में पटाखों से आंखों की जलन और क्षति के 105 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से कई मरीजों की दृष्टि स्थायी रूप से प्रभावित होने की आशंका है, जबकि कुछ की रोशनी को जटिल शल्य चिकित्सा के माध्यम से बचाया गया है। अस्पताल में प्रतिदिन नए मरीज पहुंच रहे हैं, जिनमें अन्य चिकित्सालयों से रेफर किए गए मामले भी शामिल हैं। अधिकांश मरीजों में कार्निया गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त पाई गई है, जिससे दृष्टि हानि की चुनौती बढ़ गई है। अब ऐसे में हैलट अस्पताल में अबतक के रिकॉर्ड के अनुसार बढ़ते हुए आंखों के मामले बेहद चिंताजनक है, ऐसे में ये मामले पिछले वर्ष के तुलना में 3 गुना अधिक है ।

आँख के मरीजों की संख्या में तीन गुना वृद्धि

नेत्र रोग विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष आई बैंक की प्रोफ़ेसर/डायरेक्टर व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की सचिव डॉ. शालिनी मोहन ने बताया कि इस वर्ष 20 से 27 अक्टूबर के बीच दर्ज मामलों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना अधिक है। इसका मुख्य कारण कार्बाइड युक्त पटाखों का बढ़ता उपयोग है, जो सस्ते और तीव्र धमाके वाले होने के कारण लोकप्रिय हैं, किंतु आंखों के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो रहे हैं।


कार्बाइड पटाखों के उपयोग से बढ़े 65% मामले 

डॉ. शालिनी मोहन के अनुसार, लगभग 65% मरीजों की आंखें कार्बाइड पटाखों से प्रभावित हुई हैं। इनमें प्रयुक्त कैल्शियम कार्बाइड पानी के संपर्क में आने पर एसिटिलीन गैस उत्पन्न करता है, जिससे हानिकारक रसायन निकलते हैं। ये रसायन कार्निया पर सीधा आघात करते हैं, जिससे यह सफेद पड़ जाती है और दृष्टि हानि हो जाती है।

कार्बाइड बंदूकें प्लास्टिक या टिन पाइप से निर्मित होती हैं और कैल्शियम कार्बाइड, माचिस की तीलियां तथा बारूद के मिश्रण से संचालित होती हैं। इन्हें ‘पीवीसी मंकी रिपेलर गन’ के नाम से भी जाना जाता है। संपर्क में आने पर कार्निया की परत घुल जाती है; कई मामलों में पर्दा फट गया, जिसे शल्य क्रिया से सील किया गया।


प्रमुख मामले

  1. दिव्यांश ओमर (21 वर्ष, विनायकपुर) पटाखा फटने से चश्मे का लेंस आंख में घुस गया, पुतली फट गई। शल्य क्रिया से कांच निकाला गया; दृष्टि बहाली अनिश्चित।

  2. अमन सिंह (15 वर्ष, किदवई नगर) मित्र द्वारा छोड़ी गई कार्बाइड गन से रसायन आंख में प्रवेश कर गया, कार्निया सफेद हो गई, दृष्टि बंद।

  3. विपिन (11 वर्ष, फतेहपुर) पीछे से छोड़ी गई कार्बाइड गन से एक आंख पूरी तरह झुलस गई; मात्र 10% दृष्टि शेष।

  4. मुस्कान (15 वर्ष, पनकी सुजातपुर) चिंगारी से पुतली जल गई; दृष्टि बचने की संभावना, किंतु क्षति गहन।

  5. अरविंद श्रीवास्तव (श्याम नगर) गन छोड़ते समय रसायन बैकफायर से बाईं आंख गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त; दाईं आंख में हल्की चोट।

आंखों को गंभीर क्षति और उपचार

अस्पताल में भर्ती 11 मरीजों की कार्निया पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। इनमें से 5 की दृष्टि आंशिक रूप से बहाल की गई; शेष का उपचार जारी है। क्षति की गहराई के अनुसार पुनर्बहाली समय भिन्न है, हल्की चोट में 15-20 दिन, पूर्ण कार्निया क्षति में कम से कम 2 माह का समय लग सकता है । ऐसे में विशेषज्ञों का मत है कि पारंपरिक पटाखों की जगह रासायनिक युक्त सस्ते विकल्प बाजार में प्रचलित हो गए हैं, जो चमकदार तो हैं, किंतु स्वास्थ्य के लिए जानलेवा। कार्बाइड जैसे पदार्थों से बचाव आवश्यक है।


 

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Anurag Srivastava
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खबरों की दुनिया में अनुराग श्रीवास्तव का सफर 2009 से शुरू हुआ था, जो अभी भी जारी है। पत्रकारिता जगत में कानपुर संवाद समाचार पत्र से सफ़र शुरू करते हुए, स्टार न्यूज़, वॉइस ऑफ़ इंडिया, सी न्यूज़, सहारा समय, बंसल न्यूज़, इंडिया टीवी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में बीते 16 साल से क्राइम, राजनितिक, एंटरटेनमेंट, एजुकेशन से जुडी हर छोटे-बड़े विषयों की ख़बर पर पकड़ रखते हैं। अनुराग श्रीवास्तव फिलहाल इंडिया न्यूज़ 24x7 .कॉम में बतौर एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। खाली समय में क्रिकेट खेलने, घूमने, फिल्‍में/वेब सीरीज, न्यूज़ चैनल देखने और किताबें पढ़ने का शौक रखते हैं।

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